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प्रेमाश्रयी शाखा ( सूफी काव्य ) भक्तिकाल Hindi literature

सूफी साधना के  अनुसार मनुष्य के चार विभाग है- 1. नफ्स ( इंद्रिय ) 2. अक्ल ( बुधि या माया ) 3. कल्ब ( हृदय ) 4. रुह ( आत्मा ) । सूफी साधना का प्रवेश इस देश में 12वीं सती में मोइनुद्दीन चिश्ती के समय से माना जाता है सुपर साधना के चार संप्रदाय प्रसिद्ध है। 1. चिश्ती 2.कादरी 3.सोहरावर्दी 4. नक्शबंदी । मुरला दाऊद (1379ई)  हिन्दी के प्रथम सूफी कवि है। प्रेमाश्रयी शाखा के प्रमुख कवि एवं उनकी रचनाएं - मुरला दाऊद - मुरला दाऊद की रचना " चंदायन " से सूफी काव्य परंपरा का आरंभ माना जाता है इसका रचनाकाल 1379 ईं है । चंदायन की भाषा परिष्कृत अवधी है । मुरला दाऊद हिंदी के प्रथम सूफी कवि हैं । कुतुबन - कुतुबन चिश्ती वंश के शेख बुरहान के शिष्य थे। कुतुबन ने  " मृगावती " की रचना 1503-04ईं में की थी। यह सोहरावर्दी पंंथ के थे ‌। इसमें चंदनगर के राजा गणपति के राजकुमार और कंचनपुर के राजा रूप मुरारी की कन्या मृर्गावती की प्रेम कथा का वर्णन है । मलिक मोहम्मद जायसी - (  16वीं शताब्दी )- मलिक मोहम्मद जायसी हिंदी के सूफी काव्य परंपरा के साधकों एवं कवियों के सिरमौर है । ये अमेठी के निकट

निर्गुण काव्य ( ज्ञानाश्रयी शाखा ) भक्तिकाकल Hindi literature

ज्ञानाश्रयी काव्य धारा और उसके प्रमुख कवि -  नामदेव - इनका जन्म 1267 ई. को महाराष्ट्र के सतारा के नरसी वमनी गांव में हुआ था संत नामदेव छीपा दर्जी थे । संत विसोवा खेचर इनके गुरु थे । कबीर - ( 1398ई.- 1518ई. ) काशी - इनका जन्म विधवा ब्राह्मणी के घर हुआ था । जिसने लोकापवाद के भय के कारण इन्हें लहरतारा तालाब के निकट छोड़ दिया । इनका पालन-पोषण ' नीरू-नीमा' नामक जुलाहा दंपति ने किया । कबीर की मृत्यु के बारे में कहा जाता है। कि हिंदू इनके शव को जलाना चाहते थे और मुसलमान दफनाना । इससे विवाद हुआ, किंतु पाया गया । कि कबीर का शरीर अंतर्धान हो गया है वहां कुछ फूल है उनमें से कुछ फूलों को हिंदुओं ने जलाया व कुछ को मुसलमानों ने दफनाया । उनकी पत्नी का नाम ' लोई' था इनकी संतान के रूप में पुत्र कमाल व पुत्री कमाली का उल्लेख है । रामानंद इनके दीक्षा गुरु थे । कबीर के शिष्य धर्मदास  ने इनकी वाणी का संग्रह किया। जिसे " बीजक " कहा जाता है । इसके 3 भाग है - साखी,सबद, रमैनी ।  रमैनी व सबद गाने के पद है जो ब्रज भाषा में है तथा साखी दोहा छंद में हैं। कबीर की भाषा 'सधुक्कड़ी&

भक्तिकाल ( सन् 1318 से 1643 ई० तक ) Golden age of Hindi literature

भूमिका - भारतीय धर्म साधना में भक्ति मार्ग का अपना एक अलग ही स्थान है। भारतीय चिंतन धारा में भक्ति काल एक ऐसा काल था जिसने अपने आदर्श विचारों एवं शुद्ध आध्यात्मिक कार्यक्रमों द्वारा अपना नाम स्वर्ण अक्षरों में उल्लेखित करवाया । इसी कारण भक्तिकाल को हिंदी साहित्य का स्वर्ण काल कहा जाता हैै । भक्ति आंदोलन एक ऐसा आंदोलन था जिसमें प्रत्येक जाति, वर्ग, धर्म अर्थात् प्रत्येक वर्ग के लोगों का योगदान था । अर्थात भक्ति काल प्रत्येक जाति, वर्ग एवं धर्मों के उपज का ही परिणाम था । भक्तिकालीन साहित्य तथा उसके आध्यात्मिक विचार किसी विशेष स्थान व काल के अधीन नहीं है बल्कि वो तो सार्वभौमिक है । भारत में प्राचीन काल से ही धर्म और मोक्ष की साधना के लिए तीन मुख्य मार्ग प्रचलित रहे है -  कर्म, ज्ञान तथा भक्ति ।  आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने " धर्म की भावनात्मक अनुुुभूति को भक्ती कहा है । " आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के अनुसार -। "  भक्ति आंदोलन भारतीय चिंतन धारा का स्वभाविक विकास है ।" कबीर ने कहा - " भक्ति द्रविड़ ऊपजी उत्तर लाया रामानंद " नयनार - जो शिव के भक्त थे । आ

आदिकालीन हिन्दी साहित्य की प्रमुख विशेषताएं। ( Salient features of ancient Hindi literature )

वीरगाथात्मक काव्य रचनाएं - आदिकालीन साहित्य में वीरगाथाओं का विशेष प्रचलन था जिसमें कभी कवि अपने आश्रयदाताओं की वीरता, साहस, शौर्य एवं पराक्रम को अतिरंजित बनाकर प्रस्तुत करते थे। जिस से उनमें जोश एवं    शौर्य जाग्रत होता था । युद्धों का वर्णन - आदिकालीन साहित्य से ज्ञात होता है । कि   राजा का प्रजा पर ध्यान कम और अपने साम्राज्य विस्तार पर ध्यान ज्यादा था । जिस के कारण आए दिन युद्ध के बिगुल बज उठते थे । जिसमें अनेक लोग युद्ध में वीरगति को प्राप्त हो जाते थें जिसका आदिकालीन कवियों ने बड़ा चढ़ाकर वर्णन किया है । संकुचित राष्ट्रीयता की भावना - उस समय राष्ट्रीयता की भावना का अभाव था । लोग एक दूसरे के स्वार्थ सिद्ध करने में लगे हुए थे । उस समय राष्ट्र का मतलब एक राजा था सामंत की राज्य सीमा थी जिसे वे अपना मानते थे । संपूर्ण भारत को राष्ट्र नहीं समझा गया । इसी कारण पृथ्वीरााज चौहान को शहाबुद्दीन गोरी ने पर परास्त किया । लोक भाषा का साहित्य - सातवीं शताब्दी से दसवीं शताब्दी की अपभ्रंश लोक भाषा के रूप में प्रचलित रही । इस समय के सिद्धाचार्यो , जैनाचार्यों एवं नाथ संप्रदाय के अनुयायियों न

रासो साहित्य ( आदिकाल ) Hindi literature

रासो साहित्य- " रासो " शब्द की व्युत्पत्ति को लेकर विद्वानों में मतभेद है । फ्रांसीसी इतिहासकार  गार्सा- द- तासी ने रासो शब्द की व्युत्पत्ति " राजसूय " से मानी है। आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने " रसायण " शब्द से मानी है । नरोत्तम स्वामी ने रासो शब्द की व्युत्पत्ति " रसिक " शब्द   से मानी है। आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी व चंद्रबली पांडेय ने संस्कृत के " रासक " शब्द से ही रासो शब्द की व्युत्पत्ति मानी है । प्रमुख रासो साहित्य - खुमान रासो - इसका समय 9वीं शताब्दी है कुछ विद्वान इसका समय 17वीं शताब्दी मानते हैं । इसे चित्तौड़गढ़ नरेश खुमाण के समकालीन कवि दलपत विजय द्वारा रचित माना है इसकी भाषा डिंगल है । हम्मीर रासो - इसका समय 13वीं शताब्दी है इसके रचनाकार कवि शाड़र्गगधर है इसमें रणथंभौर के राव हमीर देव चौहान के शौर्य, अलाउद्दीन खिलजी द्वारा 1301 ईसवी में रणथंभौर पर किए गए आक्रमण का वर्णन है । प्राकृत पैैैैंगलम में इसके कुछ छंद मिलते है । बीसलदेव रासो - इसके रचनाकार कवि नरपति नाल्ह है । इसका समय कुछ विद्वानों ने 1272 विक्रम स

आदिकाल ( नाथ साहित्य ) Hindi literature

नाथ साहित्य - आदिकाल में सिद्ध साहित्य, जैन साहित्य तथा नाथ साहित्य अत्यधिक महत्वपूर्ण रहा है । हजारी प्रसाद द्विवेदी ने लिखा है - " नाथ पंथ या नाथ संप्रदाय, सिद्धमत, सिद्धमार्ग, योगमार्ग, योग संप्रदाय व अवधूत संप्रदाय के नाम से प्रसिद्ध है ।" ये मुख्यत: दो संप्रदायों के नाम से जाना जाता है - 1. सिद्धमत 2. नाथमत । इन दो भागो के नाम से पुकारे जाने का कारण है । पहला मत्स्येन्द्र तथा दुसरा गोरखनाथ । गोरखनाथ - यह नाथ संप्रदाय के सशक्त प्रणेता थे इन का समय 845 ईसवी माना जाता है । गोरखनाथ का हठयोग भक्ति काल का हठयोग है । हठयोग का तात्पर्य-  ' ह ' का अर्थ ' सूर्य ' तथा 'ठ' का अर्थ चंद्रमा है, अर्थात सूर्य चंद्र को जाग्रत रखता है । हठयोग में  मन की शुद्धि पर ध्यान दिया जाता है । चर्पटनाथ- यह गोरखनाथ के शिष्य थे । जो बाह्य आडम्बबरों को रखने वाले साधुओं को फटकारते थे । चौरंगी नाथ -  ये मत्स्येन्द्र नाथ के  शिष्य और गोरखनााथ के गुरू भाई थे। इनकी रचना - " प्राण साकली "  हिंदी साहित्य में नाथ संप्रदाय का प्रभाव -  बौद्ध धर्म के प्रचार को क

आदिकाल ( जैन साहित्य ) Hindi literature

जैन साहित्य - आठवींं शताब्दी में जैन धर्मावलंबियों ने अपने मत का प्रचार करना शुरू कर दिया। इन्होंने जैन तीर्थंकरों के जीवन चरित्र व वैष्णव अवतारों की कथाओं को अपने सााित्य का आदर्श बनाया। अपभ्रंश भाषा में रचित साहित्य के रचनाकारों के प्रमुख कवि -  स्वंभू - इनका समय 783 ईसवी माना गया है इनकी 3 अपभ्रंश की रचनाएं उपलब्ध है - " पउम चरिउ " , " रिटठ् नेमिचरिउ ", " स्वयंभू छंद ", पुष्यदंत-  इनका समय दसवीं शताब्दी के आसपास रहा है इन को " अपभ्रंश भाषा का व्यास "  कहा जाता है । यह मान्यखेत के प्रतापी राजा महामात्य भीत के सभा कवि थे । इनके प्रमुख 3 ग्रंथ है - " णयकुुुुमार चरिउ ", " महापुराण", " जसहर चरिउ ", धनपाल- इनका समय दसवीं शताब्दी रहा। यह धक्कड़ वैैैश्य  कुल के थे। इनका मूल उद्देश्य श्रुत पंचमी व्रत के महात्म्य प्रतिपादित करना है इनकी रचना " भविष्यतकहा " है जो अपभ्रंश का लोकप्रिय महाकाव्य है । देवसेन- आचार्य देव सेन 933 ईसवी के कवि है अपभ्रंश में " श्ररावकार " इन की प्रसिद्ध रचना है इसमें 25

आदिकाल ( Hindi literature )

आदिकालीन साहित्य का भाषा स्वरूप- आदिकाल की मूल भाषा अपभ्रंश ही साहित्यिक भाषाा के रूप में उभरकर आ रही थी। अपभ्रंश की साहित्यिक सामग्री की विवेचना करें तो हमें चार रूप मिलते हैं - लोक भाषा में लिखित अपभ्रंश साहित्य । राजस्थानी मिश्रित अपभ्रंश साहित्य । मैथिली मिश्रित अपभ्रंश साहित्य । खड़ी बोली मिश्रित देसी भाषा साहित्य । अपभ्रंश साहित्य - अलौकिक अपभ्रंश का साहित्य-  (1) सिद्ध साहित्य (2) जैन साहित्य (3) नाथ साहित्य सिद्ध साहित्य - इस साहित्य के प्रमुख कवि - सरहप्पा - सरहपाद इस समय के प्रमुख सिद्ध माने जाते हैं इनका समय 759 ईसवी माना गया है । इन्होंने 32 ग्रंथों की रचना की । इन की प्रसिद्ध रचना - " दोहाकोश " व " चर्यापद "  शबरपा - शबरो का सा जीवन यापन करने के कारण इनका   नाम शबरपा कहलाया। " चर्यापद " उनकी प्रमुख रचना है ‌। ‌लुइपा - यह शबरपा के शिष्य थे । इन की पंक्तियां - " कौआ तरुवर पंच विडाल, चंचल चीए पइठा काल "। डोम्बिपा- इनका समय 840ई.  माना गया है   इन गुरु का नाम विरूपा था । इन की प्रसिद्ध रचना - " डोम्बबि- गीति

हिन्दी का प्रथम कवि ( First poet of Hindi)

हिन्दी का प्रथम कवि - हिंदी  के प्रथम कवि को लेकर विद्वानों में मतभेद है शिव सिंह सेंगर ने अपने ग्रंथ " शिवसिंह सरोज " में हिंदी के प्रथम कवि के रूप में सातवीं शताब्दी के ' पुष्यदन्त ' नामक किसी कवि का उल्लेेेेख किया है । राहुल सांकृत्यायन ने सातवीं शताब्दी के ' सरहपाद ' को हिंदी का प्रथम कवि माना है  डॉ गणपति चंद्र गुप्त ने अपने ग्रंथ " हिंदी साहित्य का वैज्ञानिक इतिहास " में " भरतेश्वर बाहुबली रास " के रचयिता ' शालिभद्र भूरि ' को हिंदी का प्रथम कवि माना है मिश्र बंधुओं ने अपने ग्रंथ " हिंदी नवरत्न " में ' चंदरबदाई '  को हिंदी का प्रथम कवि माना हैं । आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने भी ' चंदरबदाई '  को हिंदी का प्रथम कवि माना है एवं इनकी रचना " पृथ्वीराज रासो " को हिंदी का प्रथम महाकाव्यय माना हैं। डॉ रामकुमार वर्मा ने अपने " हिन्दी साहित्य का आलोचनात्मक इतिहास " में    ' स्वयंभू ' को हिंदी का प्रथम कवि माना है। किंतु अंत में हिंदी साहित्य का प्रथम कवि ' सरहपाद '  

हिन्दी साहित्य के आदिकाल का नामकरण

राहुल सांकृत्यायन - ने हिंदी साहित्य के आदिकाल को " सिद्ध सामंत " काल कहा है । डॉ रामकुमार वर्मा- ने इस काल को " सन्धि व चारण " कहा है। इस नामकरण के दो कारण है 1. संधि काल दो भाषाओंं की संधियों का काल था। 2. चारण काल चारण कवियों द्वारा राजाओं की यशोगाथा को प्रकट करता है। आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी -  ने आदिकाल को " बीजवपन "   काल कहा है । श्री चंद्रधर शर्मा गुलेरी- ने आदििाल को " अपभ्रंश "  काल कहा है उन्होंनेे बताया। कि हिन्दी की प्रारंभिक स्थिति अपभ्रंश भाषा के साहित्य से शुरू होती है। विश्वनाथ प्रसाद मिश्र- ने   इस काल को " वीरकाल " कहा है। डॉ नगेंद्र - ने हिंदी साहित्य के प्रथम काल को " आदिकाल " कहा है। आचार्य रामचंद्र शुक्ल - ने निम्नलिखित 12 ग्रंथों के आधार पर हिंदी के प्रथम काल को " वीरगाथाकाल " कहा है। विजयपाल रासो ( नल्लसिंह ) हमीर रासो (  शाङर्गधर ) खुमान रासो ( दलपत विजय ) बीसलदेव रासो ( नरपति नाल्ह ) पृथ्वीराज रासो ( चंदबरदाई ) चंद्रप्रकाश ( भट्ट केदार )  जय मयंक जस चंद्रिका ( मधुकर)

Time division and naming of Hindi literature ( हिन्दी साहित्य का काल विभाजन )

हिन्दी साहित्य का काल विभाजन एवं नामकरण- डॉक्टर ग्रियर्सन ने हिंदी साहित्य के इतिहास को 11 भागों में विभाजित किया। उन्होंने हिंदी साहित्य की प्रथम काल को " चारण काल "  कहा। मिश्र बंधुओं ने अपने ग्रंथ मिश्र बंधु विनोद में निम्न प्रकार से काल विभाजन किया । आरम्भिक काल (क) - पूर्वारंभिक काल  700 विक्रम संवत से 1343 विक्रम संवत                  ( ख) - उत्तरारंभिक काल - 1344 से 1444 विक्रम संवत।  माध्यमिक काल (क)- पूर्वामाध्यमिक काल 1445 से 1560 विक्रम संवत।  (ख) - प्रौढ़ माध्यमिक काल 1561 से 1680 विक्रम संवत ।  अलंकृत काल (क) - पूर्वालंकृत काल 1681 से 1790 विक्रम संवत।     (ख) - उत्तरालंकृत काल 1791 से 1889 विक्रम संवत। परिवर्तन का काल 1890 से 1925 विक्रम संवत ।  वर्तमान काल 1926 से अधावधि। (3 ) आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने हिंदी साहित्य के इतिहास को चार भागों में विभाजित किया है - (1) वीरगाथा काल 1050 से 1375 विक्रम संवत । (2) भक्ति काल 1375 से 1700 विक्रम संवत। (3) री

History of Hindi literature in Hindi

साहित्य- साहित्य के इतिहास लेखन का मूल उद्देश्य साहित्य के आन्तरिक भाव को जनता तक पहुंचाना है । जिस प्रकार समाज साहित्य को प्रभावित करता है ठीक उसी प्रकार साहित्य भी समाज को प्रभावित करता है । इसलिए साहित्य समाज का दर्पण कहलाता है। इतिहास- इतिहास शब्द ' इति ' और  ' हास ' से बना है जिसका अर्थ होता है- " ऐसा ही था " हिन्दी साहित्य के इतिहास के स्रोत- यह स्रोत दो प्रकार के हैं- अन्त: साक्ष्य- इस में प्रकाशित रचनाओं एवं अप्रकाशित रचनाओं का संकलन है। बाह्य साक्ष्य- इस में ताम्रपत्रावली, शिलालेख, वंशावली, जनश्रुतिया, कहावतें,ख्यात एवं वचनिकाऐ होती है। हिन्दी साहित्य के इतिहास लेखन की परम्परा-  हिन्दी साहित्य का प्रथम इतिहास फ्रेंच भाषा के विद्वान ' गार्सा  द तासी ' ने लिखा था जिसका नाम  " इस्तवार द ला लितरेत्युर ऐन्दुई-ए-ऐन्दुस्तानी " है। यह दो भागों में प्रकाशित हुआ। पहला भाग  1839 ई में तथा दुसरा भाग 1847 ई में प्रकाशित हुआ। यह हिन्दी और उर्दू में लगभग 70 कवियों का संग्रह है । हिन्दी साहित्य का दुसरा इतिहास शिवसिंह सेंगर ने लिखा ।

What is literature in Hindi ?

साहित्य- समाज का दर्पण है । जिसमें भारतीय समाज की वास्तविक छवि प्रकट होती है सर्वश्रेष्ठ साहित्य में उत्तम कोटि के विचार होते हैं साहित्य हमें जीवन जीना सिखाता है । साहित्य के द्वारा हमें भारतीय समाज व संस्कृति को गौरवशाली परंपरा की ओर दिशा दे सकते है सर्वश्रेष्ठ साहित्य किसी भी भाषा का हो चाहे Hindi या English उससे हमें अच्छे विचारों व सिद्धांतों को सिखना चाहिए। क्योंकि सर्वश्रेष्ठ साहित्य किसी विशेष देश व काल के अधीन नहीं होता है ।वे तो सार्वभौमिक होता है। जब हम किसी भी भाषा के अच्छे poet व writer की बात करें तो उनके विचार हमेशा सार्थक होते हैं। उनके विचार किसी काल या परिधि के अधीन नहीं होते हैं । For example: हिन्दी में सूर्यकांत त्रिपाठी जी निराला, रामधारी सिंह दिनकर, महादेवी वर्मा, हरिवंश राय बच्चन आदि । In English : William Shekeshpear , Fransis bacon , John done etc. अर्थात जितने भी अच्छे लेखक व कवि हुए हैं उनका सम्मान करना चाहिए। क्योंकि उनको सम्मान देखें हम उनके साहित्य व काव्य का सम्मान करते हैं। Hello Friends आप को ‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌यह liter