- भूमिका - भारतीय धर्म साधना में भक्ति मार्ग का अपना एक अलग ही स्थान है। भारतीय चिंतन धारा में भक्ति काल एक ऐसा काल था जिसने अपने आदर्श विचारों एवं शुद्ध आध्यात्मिक कार्यक्रमों द्वारा अपना नाम स्वर्ण अक्षरों में उल्लेखित करवाया । इसी कारण भक्तिकाल को हिंदी साहित्य का स्वर्ण काल कहा जाता हैै । भक्ति आंदोलन एक ऐसा आंदोलन था जिसमें प्रत्येक जाति, वर्ग, धर्म अर्थात् प्रत्येक वर्ग के लोगों का योगदान था । अर्थात भक्ति काल प्रत्येक जाति, वर्ग एवं धर्मों के उपज का ही परिणाम था । भक्तिकालीन साहित्य तथा उसके आध्यात्मिक विचार किसी विशेष स्थान व काल के अधीन नहीं है बल्कि वो तो सार्वभौमिक है । भारत में प्राचीन काल से ही धर्म और मोक्ष की साधना के लिए तीन मुख्य मार्ग प्रचलित रहे है - कर्म, ज्ञान तथा भक्ति ।
- आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने " धर्म की भावनात्मक अनुुुभूति को भक्ती कहा है । "
- आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के अनुसार -। " भक्ति आंदोलन भारतीय चिंतन धारा का स्वभाविक विकास है ।"
- कबीर ने कहा - " भक्ति द्रविड़ ऊपजी उत्तर लाया रामानंद "
- नयनार - जो शिव के भक्त थे ।
- आलवार - जो विष्णुु के भक्त थे ।
- भक्ति साहित्य की दो धाराएं है -
- निर्गुण काव्य - इसकी दो उपधाराएं है -
( ख ) प्रेमाश्रयी शाखा - इसे सूफी काव्य भी कहते हैं ।
2. सगुण धारा - इस की दो उपधाराएं है -
( क ) रामभक्ति शाखा - इसमें सामाजिक मर्यादा एवं लोकमंगल का काव्य है ।
( ख ) कृष्णभक्ति शाखा - वहीं कृष्ण भक्ति काव्य प्रधानत: लोकरंजन के पक्ष को अपने कविता का विषय बनाता है ।
- सगुण मतवाद में विष्णु के 24 अवतारों में से अनेक की उपासना होती है जैसे - राम और कृष्ण ।
- भक्ति के संप्रदाय - प्रमुख चार वैष्णव संप्रदाय -
- श्री संप्रदाय - इसके आचार्य रामानुजाचार्य है इन्होंने विशिष्टाद्वैतवाद की स्थापना की है ।
- ब्राह्म संप्रदाय - इसके प्रवर्तक मध्वाचार्य थे उनका जन्म गुजरात में हुआ था ।
- रुद्र संप्रदाय - इस के प्रवर्तक विष्णु स्वामी थे इन्होंने ' प्रेम लक्षणा ' भक्ति ग्रहण की ।
- सनकादि संप्रदाय - इसके प्रवर्तक निंबार्काचार्य है ।
- राधावल्लभी संप्रदाय - इसके प्रवर्तक हितहरिवंश थे उनका जन्म 1502 ईसवी में मथुरा के पास बांदगांव में हुआ था ।
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