- वीरगाथात्मक काव्य रचनाएं - आदिकालीन साहित्य में वीरगाथाओं का विशेष प्रचलन था जिसमें कभी कवि अपने आश्रयदाताओं की वीरता, साहस, शौर्य एवं पराक्रम को अतिरंजित बनाकर प्रस्तुत करते थे। जिस से उनमें जोश एवं शौर्य जाग्रत होता था ।
- युद्धों का वर्णन - आदिकालीन साहित्य से ज्ञात होता है । कि राजा का प्रजा पर ध्यान कम और अपने साम्राज्य विस्तार पर ध्यान ज्यादा था । जिस के कारण आए दिन युद्ध के बिगुल बज उठते थे । जिसमें अनेक लोग युद्ध में वीरगति को प्राप्त हो जाते थें जिसका आदिकालीन कवियों ने बड़ा चढ़ाकर वर्णन किया है ।
- संकुचित राष्ट्रीयता की भावना - उस समय राष्ट्रीयता की भावना का अभाव था । लोग एक दूसरे के स्वार्थ सिद्ध करने में लगे हुए थे । उस समय राष्ट्र का मतलब एक राजा था सामंत की राज्य सीमा थी जिसे वे अपना मानते थे । संपूर्ण भारत को राष्ट्र नहीं समझा गया । इसी कारण पृथ्वीरााज चौहान को शहाबुद्दीन गोरी ने पर परास्त किया ।
- लोक भाषा का साहित्य - सातवीं शताब्दी से दसवीं शताब्दी की अपभ्रंश लोक भाषा के रूप में प्रचलित रही । इस समय के सिद्धाचार्यो , जैनाचार्यों एवं नाथ संप्रदाय के अनुयायियों नेे लोक भाषा में ही अपनी रचनाएं प्रस्तुत की । इस प्रकार आदिकाल में लोक भाषा व लोक साहित्य का महत्व रहा ।
- वीर और श्रृंगार रस का समन्वय - इस युग में कवि वीर एवं श्रृंगार रस का प्रयोग साथ साथ कर रहे थे । इस युग में कवियों ने नारी सौंदर्य का अतिशयोक्ति पूर्ण वर्णन किया । इस युग के कई युद्ध साम्राज्य विस्तार के साथ साथ नारी सौंदर्य की लालसा के लिए भी लड़े गए ।
- ऐतिहासिकता की अपेक्षा कल्पना के प्रधानता- आदिकालीन राज्याश्रित कवियों का लक्ष्य राजा की प्रशंसा करना था उनकी दृष्टि में ऐतिहासिकता गौण थी । वे अपनी प्रतिभा को मात्र पोषित करते थे प्रकट नहीं । इस प्रकार आदिकालीन कवियों के लिए ऐतिहासिकता की अपेक्षा कल्पना प्रधान थी ।
- प्रबंध एवं मुक्तक गीत - आदिकालीन काव्य दो रुपों में मिलता है प्रबंध काव्य वीरगाथा के रूप में पृथ्वीराज रासो तथा दूसरा मुक्तक गीतिकाव्य बीसलदेव रासो वर्णित है ।
- डिंगल भाषा युक्त का काव्य - आदिकाल में राजस्थानी भाषा में जो साहित्य रचा गया वह डिंगल भाषा का साहित्य है । इस के साथ ही अपभ्रंश भाषा में भी खूब साहित्य रचा गया ।
- इस प्रकार आदि आदिकालीन साहित्य की प्रमुख विशेषताएं रही ।
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